भिलाई की पत्रिका न्यूज़ : भिलाई , भोजपुरी लोकगायिका शारदा सिन्हा, जो अपनी मधुर आवाज़ और छठ मैया के गीतों के लिए देशभर में प्रसिद्ध थीं, ने कल रात 9:20 बजे अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से बोन मैरो कैंसर से जूझ रही थीं और हाल ही में अस्पताल में भर्ती थीं। उनके निधन से संगीत जगत और छठ पर्व प्रेमियों के बीच शोक की लहर दौड़ गई है।
शारदा सिन्हा ने भोजपुरी लोकसंगीत को एक नई पहचान दी। विशेष रूप से छठ पूजा के गीतों में उनकी आवाज़ का जादू ऐसा था कि उनके बिना यह पर्व अधूरा लगता। उनके गीतों जैसे "कांच ही बांस के बहंगिया", "उग हो सूरज देव" और "पहिले पहिल हम कईनी" ने छठ पर्व को एक नई ऊंचाई दी।
वैशाली नगर के विधायक रिकेश सेन ने शारदा सिन्हा के सम्मान में भिलाई के कुरूद क्षेत्र के नकटा तालाब का नाम 'शारदा सिन्हा सरोवर' रखने की घोषणा की है। उन्होंने बताया कि एक करोड़ रुपये की लागत से इस सरोवर का सौंदर्यीकरण किया जाएगा और वहां शारदा सिन्हा की प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी। इस नामकरण के लिए जल्द ही प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा जाएगा।
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में हुआ था। 1970 में उनका विवाह ब्रज किशोर सिन्हा से हुआ, जो बिहार शिक्षा सेवा के अधिकारी थे। शारदा सिन्हा ने शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ी और वे प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुईं।
छठ पर्व के अलावा, उन्होंने कई अन्य त्योहारों के गीतों को भी अपनी आवाज़ दी, जो आज भी घर-घर में गूंजते हैं। उनके गीतों की मिठास और लोकसंगीत की आत्मा ने उन्हें हर उम्र के लोगों के दिलों में बसा दिया।
शारदा सिन्हा का संगीत सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव है, जो हर त्योहार में नई ऊर्जा भर देता है। उनके गाए गीत, खासकर "दुखवा मिटाईं छठी मईया", आज भी लोगों की जुबां पर हैं और उन्हें सुनकर लोग भावुक हो जाते हैं। उनके गानों में न केवल मधुरता थी, बल्कि उसमें एक अनोखी सादगी और गहराई भी थी।
शारदा सिन्हा ने अपनी आवाज़ से जो विरासत छोड़ी है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी। उनका जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनकी मधुर धुनें और गीत हमेशा हमारे साथ रहेंगे।